शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

एक और प्रयास

मंजिल के करीब आकर लौट जाना, 
बहुत अखरता है उस शिखर का छूट जाना,
थक जाते हैं जब चल चल कर ये पाँव,
मुश्किल हो जाता है तब आगे बढ़ पाना। 

पर फिर मैं नज़रें उठती हूँ,
सामने शिखर की ओर देखती हूँ,
देखती हूँ अपने सपने  को,उसकी चमक को,
फिर उत्साह सा भर जाता है कुछ कर गुजरने को,
मेरा मन ठान लेता है, एक और कदम बढ़ने को,
एक और प्रयास करने को, 
मेरा मन ठान लेता है, फिर उस शिखर की ओर चढ़ने को। 

क्यूंकि गिरना तो फितरत है इंसान की,
तूफानों में दीवारें ढहती हैं जैसे किसी कमज़ोर से मकान की,
क्यूंकि हार तो जीत का दर्पण है,
उठकर फिर प्रयास करना ही तो जीवन है। 

क्यूंकि गिरे तो लाखों हैं  लक्ष्य की  होड़ में,
पर मैं अलग हूँ, क्यूंकि मुझे हारना नहीं,
मैं अलग हूँ क्यूंकि मुझे फिर उठना है,
एक बार और प्रयास करना है। 




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