सोमवार, 13 जनवरी 2014

आईना (Aaina)


ये आईना रोज मुझे क्या दिखा देता था,
मुझको हर दिन मुझसे मिला देता था,
एहसास करा देता मुझको मुझपन का,
क्यूँ मेरे अस्तित्व को हिला देता था।

वो नाकामयाब सी सूरत, जो हँसने से पहले मायूसियों मे छिप जाती थी,
वो पांच फूटिया कद, जो कही से कही तक नहीं पहुँचता,
वही दो आँखे जिसे किसी की तलाश नहीं थी,
वही दो पाँव, जो चलने से पहले थक चुके थे।

वो अनबुझ चेहरा, जिसमे कोई आब न था
वो सुनी बुझी आखे, जिनमे कोई ख्वाब  न था,
वो फूली सी नाक, जो खुशिओं की खुशबू तक न पहचानती,
वो खड़े से कान, जो किसी की आहट तक न सुनना चाहते।

वो ओंठ थे या दो खिंची रेखाएं, जो चिपकी सी  मुस्कान लिए फिरते थे
वो दो हाथ, जो किसी के एहसास से भी डरते थे
ये सफ़ेद-सा रंग, जो मुझपर पुता था
ये क्यूँ मुझको बदसूरत, बदरंग बना देता था।

पर एक दिन मैं अपने बिस्तर से उठी, रोज की तरह नहाई धोई
सुनी जिन्दगी की एक और सुबह खोई,
अपने सफ़ेद रंग को और साफ किया,
और आईने के सामने जा खड़ी हुई।

आज फिर इस आईने ने मुझे क्या दिखा दिया,
मुझको उसने ये क्या बना दिया,
जिन्दगी से मुझको लड़ना सिखा दिया,
मुझमे छिपे मै को मुझसे मिला दिया।

आज मै सिर्फ़ जिन्दा नही जी रही हूँ
कामयाबी मेरी और मै कामयाबी की हो रही हूँ
मुझे हर चीज खूबसूरत लग रही है,
मै दुनिया की और दुनिया मेरी लग रही है।

आज ऐसे मेरी ज़िन्दगी खलिखला रही है,
जैसे मेरे होठ नही मेरी जिन्दगी  मुस्कुरा रही है.
खुला आसमान बाँहें फैलाये मेरी ओर ताक रहा है,
चमकता सूरज बहता पानी खिलता फूल जैसे सबकुछ  मेरे लिए है।

आज फिर ये आइना मुझे क्या दिखा रहा है,
मुझको हर पल मुझसे मिला रहा है
एहसास करा  रहा है मुझको मुझपन का,
जैसे मेरे अस्तित्व  को नयी दिशा दिखा रहा है,
मुझको मुझसे ही प्यार करना सिखा रहा है।

वही मायुसिओं भरी सूरत खिलखिलाने लगी है,
वही पांच फूटिया कद अब हर जगह पहुँचने की ताकत रखती है,
वही आँखें अब सपने संजोने लंगी है,
वही दो पाँव जैसे अब अथक चलते जाने को तैयार खड़े हैं।

ये आबो भरा चेहरा सुलझता जा रहा है,
ये ख्वाबों भरी आँखें दमकती जा रही है,
ये वही दो हाथ जिनमे आज भिवषय बनाने की शक्ति है,
ये सफ़ेद-सा रंग मुझे गोरा बना रहा है,
मुझमे बदसूरती से सुंदरता ला रहा है,
ये आईना सचमुच मुझे सच दिखा रहा है,
ये आज मुझको मुझसे मिला रहा है। 

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